कंजूस की मौसी

कंजूस की मौसी….

एक गांव मे बंसी नाम का एक कंजूस व्यक्ति रहा करता था, एक दिन बंसी अपने गोदाम में बैठा हुआ मोहन से साफ सफाई करवा रहा था,
बंसी -“अबे ओ मोहन वो देख एक अनाज का दाना पड़ा हुआ है, उसे भी बोरी में रख”

मोहन -“मालिक इस एक अनाज के दाने से बोरी में क्या फर्क पड़ेगा, आपकी पचास किलो की बोरी एक दाने से 60 किलो की तो नहीं हो जाएगी”
बंसी -“अरे मुझसे मुंह मत चला तू नहीं जानता की एक एक दाना इकट्ठा करके पूरी गेहूं की बोरी बन जाती है, वह सामने एक बोरी देख रहा है”
मोहन -“हां देख रहा हूं मलिक काफी वर्षो से उस बोरी को देख रहा हूं”
बंसी -“वह पूरी बोरी एक-एक दाना इकट्ठा करके ही मैंने भरी है”
मोहन -“और यह बोरी कितने वर्षों में भरी है”

बंसी -“लगभग बीस वर्षों में,इसका मतलब जानता है तू मैं एक-एक दाना इकट्ठा करके बीस वर्षों में पूरे पंद्रह सो रुपए की बचत कर ली, अगर मैं भी तेरी तरह एक-एक दाने पर ध्यान नहीं दूं तो मेरा कितना भारी नुकसान हो जाएगा”
बंसी -“आपकी बात सुनकर आपके चरण छूने को मन कर रहा है मालिक”
बंसी -“ज्यादा दिमाग खराब मत कर एक तो वैसे भी जब से मैंने सुना है कि मेरी मौसी घर पर आ रही है तब से मेरा दिमाग खराब पड़ा हुआ है”
बंसी -“अरे सेठ जी अतिथि तो भाग्यशालियों के घर पर आते हैं आपने नहीं सुना अतिथि देवो भवा”
बंसी -“बकवास बंद कर अतिथि खर्चा भवा”

इतना बोलकर बंसी अपने घर पर जा कर अपनी पत्नी से बोला,
बंसी -“मैं दो तक घर नहीं आऊंगा,मौसी जी आए तो उनको बोल देना कि मैं इस गांव में ही नहीं हूं एक-दो घंटे बाद वो स्वयं चली जाएंगी”
इतना बोलकर बंसी ने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने बंसी की मौसी मुस्कुराती हुई खड़ी हुई बंसी को देख रही थी,
बंसी की मौसी -“मैं जानती थी कंजूस तू ऐसा ही करेगा, अब जल्दी से रास्ता छोड़ और मुझे अंदर आने दे”

बंसी की मौसी सामान लेकर अंदर चली गई,
बंसी की पत्नी -“अरे मौसी जी आईये मैं आप ही का इंतजार कर रही थी,और ये तो सुबह से आपका इंतजार कर रहे थे”
बंसी की मौसी -“हां हां बाहर सब सुना मैंने ”
बंसी की पत्नी -“इन की तरफ से मैं क्षमा मांगती हूं”

बंसी की मौसी -” इस कंजूस मक्खी चूस के चर्चे अब बस अखबारों में ही छपना बाकी है,जा मेरे लिए एक गरमा गरम चाय बना”
बंसी -“क्या चाय???चाय पीने की क्या आवश्यकता है मौसी जी???

चाय पीने से बहुत नुकसान होते हैं, और दूध का भी खर्चा होता है अगर हम रोज चाय का दूध बचाये तो एक साल में कितने पैसों की बचत कर सकते हैं हम”
बंसी की मौसी -“चुप कर कंजूस कहीं का”

दोपहर के समय बंसी की पत्नी बंसी की मौसी के साथ आलू और तोरई की सब्जी छिल रही थी,तभी बंसी वहां पर आ गया,
बंसी -“अरे यह क्या कर रही हो तुम यह छिलके क्यों फेंक रही हो”
बंसी की मौसी – “क्यों इन छिलको का क्या तू अचार डालेगा”
बंसी -“अरेमौसी महंगाई बहुत हो गई है, जब मैं बाजार से सब्जी खरीदने जाता हूं तो वह छिलकों सहित सब्जी तोलता है”
बंसी की मौसी -“तो तू कहना क्या चाहता है”

बंसी -“यही कि छिलके फेंकने के बजाय,इन छिलकों की चटनी बना लेना चाहिए,वो चटनी अचार जैसी स्वादिस्ट होगी”
बंसी की मौसी -“बकवास मत कर बंसी क्या तुझे काम पर नहीं जाना जा जल्दी से कम पर जा,और सुन शाम को मेरे लिए मछली लेकर आना,मैं शाम को मछली खाए बगैर नहीं सोती”
बंसी -“राम राम यह कैसी बातें कर रही है मौसी मांस खाना बहुत बुरी बात है”

बंसी की मौसी -“अरे मुझे मत बता पाप और पुण्य जो बोला है वह कर तुझे मौसा जी का वादा याद तो है ना, तेरे और मेरे मौसा जी के जाने के बाद सारी संपत्ति वैसे भी तेरी ही है”
बंसी -” अरे तो आप दोनों जा भी तो नहीं रहे कब से बस यही सुन रहा हूं”
बंसी की मौसी -“बकवास मत कर बंसी, जा अपना काम कर”

बंसी मन मसोस कर सीधा काम पर चला गया,कुछ देर बाद एक ग्राहक बंसी के पास आकर बोला,
ग्राहक -“मुझे एक बोरी चावल की दे दो सेठ जी”
बंसी -“पिछले बकाया पैसे तो तुमने चुकाये नहीं और चावल की बोरी मांगने आ गए”

ग्राहक -“यह क्या बकवास है सेठ जी पिछले पैसों में सिर्फ दो रूपये ही बचे थे”
बंसी -“अरे पता है कि दो रूपये कितने ज्यादा होते हैं दो-दो रुपए करके अगर हम साल में इकट्ठा करेंगे तो कितना रुपए बन जाएंगे”
ग्राहक -“बस बस बस मैं समझ गया यह लो तुम्हारे दो रूपये और यह एक बोरी चावल के पैसे”

शाम को बंसी अपने आप से बोला,
बंसी -“एक तो मौसी जी ने मछली लाने को भी बोल दिया है मौसी जी को पता ही नहीं है की मछली कितनी महंगी आती है,लेकिन अगर मैंने मछली लाकर नहीं दी,तो मौसा जी की सारी जायदाद मेरे हाथ से निकल जाएगी”
बंसी झोला लेकर सीधे मछली लेना बाजार की ओर निकल गया और एक मछली वाले से बोला,
बंसी -“एक मछली कितने रुपए की दे रहे हो”

मछली वाला -“आप यह बड़ी वाली मछली ले लीजिए आपको यह 250 रूपये की मिल जाएगी”
बंसी -“क्या?? ₹250 इतने रुपए, इतने पैसे में तो मैं 15 दिन घर खर्च चलाता हूं”
मछली वाला – अरे आप ये भी खर्च ना करो सेठ जी,मेरे पास एक ऐसा उपाय है जिसमें आप के पैसे ही नही खर्च होंगे”
बंसी -“अच्छा-अच्छा तो फिर जल्दी से बता”

मछली वाला -“आप भोजन खाना ही छोड़ दो बस सुबह उठो ताजी हवा खाओ,और तालाब का ठंडा ठंडा पानी पियो,बचत ही बचत”
बंसी -“अपना मुंह बंद कर मछली के दुकानदार, वह जो सामने छोटी मछली दिख रही है ना उसको तोल दे”
मछली वाला –“अरे वह तो बहुत छोटी मछली है कितनी चाहिए”
बंसी –“सिर्फ एक”

मछली वाला –“सिर्फ एक,सेठ जी एक मछली में 50 ग्राम वजन नहीं निकलेगा”
बंसी –“बकवास मत कर जितना बोला है वह कर”
छोटी मछली तोलने लगा,
बंसी-” यह क्या कर रहा है तू”
दुकानदार -“क्यों क्या हुआ सेठ जी”

बंसी -“मुझे मूर्ख समझा है क्या?? मछली के साथ-साथ पानी भी तोल रहा है तूने मेरी आंखों के सामने पानी के अंदर से मछली निकाली है और तू उसे तराजू में रख रहा है मछली के वजन के साथ-साथ पानी का वजन भी उसमें जुड़ गया ना,पहले मछली को कपड़े से साफ कर,जब पानी की एक-एक बूंद गायब हो जाए,तब तोल मछली”
क्रोधित मछली वाले ने क्रोधित होकर बोला,
मछली वाला – इस मछली को धूप में एक घंटे सूखा देता हूं,उसके बाद तुम ले जाना”
बंसी -“बकवास मत कर, अरे मुफ्त की नहीं दे रहा मछली इस मछली के पैसे दूंगा”
बंसी मछली लेकर सीधे घर आ गया,

बंसी की मौसी -“अरे यह क्या बंसी इतनी छोटी मछली इस का क्या करूं, मुश्किल से इसमें 50 ग्राम मांस भी नहीं निकलेगा”
बंसी -“अरे मौसी अपने कलेजे पर पत्थर रखकर तो यह मछली लाया हूं ऊपर से आप खुश होने की बजाय मुझ पर नाराज हो रही है”
बंसी की मौसी -“सत्यनाथ जाय तेरा बंसी, अपने कलेजे से पत्थर वापस निकाल ले,और यह मछली वापस कर आ, सारे मूड का सत्यानाश कर दिया कंजूस कहीं का”
बंसी -“मौसी तुम कितनी अच्छी हो अभी यह मछली वापस करके आता हूं”
अगली सुबह बंसी की मौसी बंसी की पत्नी से बोली,

बंसी की मौसी -“काफी सालो से मैंने बंसी के पिता के आम के बाग को नहीं देखा,तुझे पता है बहू जब बंसी के पिताजी मेरी बहन मतलब बंसी की मां,और मुझे आम के बाग में ले जाते थे और ताजे ताजे पके हुए आम अपने हाथों से तोड़कर खिलाया करते थे, चल,मेरे साथ आज मैं तुझे अपने हाथों से ताजा आम तोड़कर खिलाऊंगी”
बंसी की पत्नी मौसी के साथ दरवाजे से बाहर निकली ही थी कि तभी बंसी मिल गया,
बंसी -“अरे मौसी कहां जा रही हो”

बंसी की मौसी -“तेरे पिता के आम के बगीचे जा रही हूं मेरा मन कर रहा है कि मैं आज अपनी बहू को ताजे -ताजे आम तोड़कर खिलाउ”
बंसी -“यह क्या कह रही है आप आपको पता भी है कि आम कितना महंगा हो गया है,अगर आप डाली से आम तोड़ देंगी तो मेरा बहुत भारी नुकसान हो जाएगा”
बंसी की मौसी -“बकवास मत कर बंसी और रास्ते से हट जा, तेरे पास आम का बगीचा है,और तेरी पत्नी एक एक काम खाने को तरस रही है, चल हट रास्ते से”
बंसी की मौसी बंसी की पत्नी को आम के बाग लेकर चली गई,बंसी अपने गोदाम में बैठा हुआ अपने आप से बातें करने लगा,

बंसी -“यह मौसी तो मेरा बेड़ा गर्क करके मानेगी,मुझे जाकर देखना होगा कहीं ऐसा ना हो कि मौसी मेरा बहुत नुकसान करवा दे”
इतना बोलकर बंसी आम के बगीचे चला गया,सामने का दृश्य देखकर बंसी को चक्कर आते हुए महसूस हुए,उसने देखा कि उसकी मौसी कुछ बच्चों के साथ वहां बैठी हुई आम खा रही थी,
बंसी -“यह क्या मौसी आप तो आम खा रही हैं साथ ही साथ इन आवारा बच्चों को भी आम खिला रही है,क्यों मेरा क्यों मेरी लुटिया डूबोने पर तुली हुई हो मौसी”
बंसी की मौसी -“मौसा जी की सारी जायदाद भी तो तुझे ही चाहिए”
तभी एक भिखारी बंसी के पास आकर बोला,

भिखारी -“मैं सुबह से भूखा हूं मुझे कुछ खाने को आम दे दो”
बंसी -“तेरा सत्यानाश जाए भिखारी,अरे मैं तो स्वयं दो दिन से भूखा हूं, जानता है क्यों??क्योंकि मेरे घर में मेरी मौसी जी आ गई है,इसका मतलब एक इंसान का खर्चा बढ़ गया है,उस खर्च की पूर्ति करने के लिए मैं दो दिन से भूखा हूं”
भिखारी -“मुझ से बड़ा भिखारी तो तू है देखना एक दिन तू कंजूसी में ही मर जाएगा और तेरी सारी दौलत को मोहल्ले पड़ोस वाले ही ऐश करेंगे,तू तो जानता ही नहीं पुण्य का क्या काम होता है”
बंसी -“क्या बोला तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे भिखारी कहने की”
भिखारी -“अबे तू तो भिखारी से भी बदत्तर है”

इतना बोलकर भिखारी वहां से चला गया बंसी की मौसी और पत्नी बंसी के ऊपर हंसने लगे,
बंसी की मौसी -“देखा बंसी अगर ऐसा ही रहा तो कुछ दिनों बाद यह भिखारी गालियां सुनाने के अलावा तुझे पीट कर भी चले जाएंगे,अब भी समय है सुधर जा”
बंसी क्रोधित हो कर चुपचाप वहां से चला गया,अगले दिन बंसी अपनी मौसी को निकालने की योजना सोचने लगा,
बंसी -“क्या करूं जिससे मौसी यहां से चली जाए कल मेरे आम के बगीचे का सत्यानाश कर दिया आज पता नहीं क्या करेंगी”
तभी बंसी के दिमाग में एक योजना आई,

बंसी -“अरे मैं तो भूल ही गया मौसी जी के नाम में मेरे ही गांव में एक बहुत बड़ा खेत भी है, जो उस ने लाला राम को दे रखा है,क्यों ना मैं मौसी से अभी उस खेत को अपने नाम करवा दूं”
इतना बोलकर बंसी सीधे अपनी मौसी के पास चला गया,जो कि घर जाने की तैयारी कर रही थी,
बंसी -“अरे मौसी जी कहां जा रही हो”

बंसी की मौसी -“घर जा रही हूं बंसी,क्या हुआ”
बंसी -“अरे मौसी जी इतनी जल्दी क्या है,कुछ दिन और रुक जाती”
बंसी की बात सुनकर बंसी की पत्नी बुरी तरह से चौंक पड़ी,
बंसी की पत्नी -“आज उलटी गंगा कैसे बहने लगी”

बंसी -“तुम चुप करो वह मेरी मौसी हैं मुझसे ज्यादा प्रेम इन्हे संसार में कोई नहीं करता”
बंसी की मौसी -“अब ज्यादा पहेलियां मत भुझा और मतलब की बात कर”
बंसी -“मौसी जी आप हमेशा मौसा की संपत्ति मेरे नाम करने की कहती रहती हैं लेकिन आपके नाम भी मेरे ही गांव में एक खेत है, जिसमें लाला राम खेती करता है,वो खेत आप अभी ही मेरे नाम क्यों नहीं कर देती”
बंसी की मौसी -” चल ठीक है तू भी क्या याद रखेगा लेकिन खेत नाम करने के लिए सरकारी कागज की भी आवश्यकता होती है”
बंसी -“अरे आप उसकी चिंता क्यों करती है मौसी मैं कागज साथ लाया हूं,बस आपको उसमें अंगूठा लगाना है”
बंसी की मौसी – “बंसी तू तो पढ़ लिख नहीं पाया लेकिन मैं तो पढ़ी-लिखी हूं मैं अंगूठा नहीं अपने नाम के साइन करती हूं,ला तू जहां कहेगा मैं वहां साइन कर दूंगी”
बंसी ने बड़ी खुशी से एक स्टांप पेपर मौसी के सामने रख दिया बंसी की मौसी ने तुरंत उस पर साइन कर दिये,
बंसी की मौसी -“यह ले आज से मेरा खेत तेरा,अब तेरी जो मर्जी चाहे उस मे खेत में वो उगाना”
बंसी की मौसी वहां से चली गई बंसी अपनी पत्नी से बोला ,

बंसी -“देखा तुमने मेरे दिमाग का कमाल दो दिनों में मेरा जितना नुकसान हुआ है मैंने उसकी सारी भरपाई कर ली”
बंसी की पत्नी – आपकी तो मन की इच्छा पूरी हो ही गई, अब उस खेत मे सांप की तरह फन फैलाये बैठे रहना”
बंसी -“बकवास बंद कर”

अगले दिन बंसी लालाराम के खेत में जाकर बोला,
बंसी -“लालाराम जी इस खेत को अभी खाली कर दीजिए क्योंकि मेरी मौसी ने ये खत मेरे नाम कर दिया है”
लालाराम के बगल में एक पुलिस वाला भी बैठा हुआ था,
पुलिस वाला -“एक बार फिर से कहना तुमने क्या कहा”

बंसी -“अरे तुम्हे ठीक से सुनाई नहीं देता क्या दरोगा बाबू मेरी मौसी ने मेरे नाम यह पूरा खेत कर दिया है यह लो कागज और देख लो”
कागज को दरोगा और लालाराम बड़ी गौर से देखने लगे,दरोगा मुस्कुराते हुए बोला,
दरोगा -“मैंने तुम्हारे बारे में सुना तो था कि तुम एक नंबर के कंजूस सेठ हो,लेकिन तुम कंजूस के साथ-साथ बहुत मूर्ख भी हो”
बंसी -“मैं कुछ समझा नहीं”

पुलिस वाला -“तुम्हारी मौसी ने यह खेत आज से 20 साल पहले ही लालाराम को बेच दिया था,और उसे वक्त गवाह भी मैं ही बना था तुम यह नकली दस्तावेज लाकर लालाराम के साथ धोखा करने का प्रयास कर रहे हो”
बंसी -” मुझे ज्यादा कानून का पाठ मत बढ़ाओ दरोगा बाबू इस सरकारी दस्तावेज पर मेरी मौसी के साइन हैं”
दरोगा -“मूर्ख बंसी तुम्हें तो यह भी नहीं पता कि तुम्हारी मौसी अनपढ़ हैं वह कभी स्कूल ही नहीं गई और साइन करना जानती ही नहीं बल्कि सिर्फ अंगूठा लगाना जानती हैं,लालाराम के पास जो दस्तावेज है उसमें तुम्हारी मौसी के अंगूठे के हस्ताक्षर हैं”

यह सुनकर बंसी को चक्कर आते हुए महसूस होने लगे हैं,
बंसी -“मुझे माफ कर दो शायद मौसी मुझे चूना लग गई”

इंस्पेक्टर -“लेकिन तुम्हारे जैसे आदमी को चूना ही लगाना चाहिए कुछ भी हो मैं तुम्हें कुछ दिन हवालात में तो रखूंगा”
बंसी -“ऐसा मत कीजिए इंस्पेक्टर साहब अगर आप मुझे हवालात में डाल देंगे तो मेरी पत्नी और मेरा बेटा मेरी सारी दौलत का सत्यानाश कर देंगे”
लालाराम -“चलो उन्हें कुछ दिन सुख से रहने को तो मिलेगा तुमसे मुक्ति जो प्राप्त होगी,देखते क्या इंस्पेक्टर गिरफ्तार करके जेल मे डाल दो इस कंजूस को”
इंस्पेक्टर बंसी को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया और बंसी की अकल ठिकाने आ गई,

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